प्रकाशित: 23 फरवरी, 2025
गंगा नदी, जो करोड़ों लोगों की जीवन रेखा और भारत में पवित्रता का प्रतीक है, एक संकट का सामना कर रही है जिसे अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। प्रयागराज में, जहां महाकुंभ मेला करोड़ों भक्तों को आकर्षित करता है, गंगा की पानी की गुणवत्ता गंभीर सवालों के घेरे में है। फीकल कॉलिफॉर्म की उच्च मात्रा और प्रदूषकों की रिपोर्ट ने चिंता पैदा की है, फिर भी कुछ लोग इन तथ्यों को बेबुनियाद कहकर खारिज कर रहे हैं। यह इनकार नदी को साफ नहीं करेगा—हमें गंगा प्रदूषण से निपटने के लिए दीर्घकालिक समाधानों की जरूरत है।
प्रयागराज में गंगा का पवित्र लेकिन संकटग्रस्त पानी
प्रयागराज, जहां त्रिवेणी संगम—गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती का मिलन होता है—वहां महाकुंभ का आयोजन होता है। यह आध्यात्मिक उत्सव 13 जनवरी, 2025 से शुरू हुआ और 26 फरवरी तक चलेगा। आधिकारिक अनुमानों के अनुसार, अब तक 55 करोड़ से अधिक तीर्थयात्री गंगा में पवित्र स्नान कर चुके हैं। भक्तों के लिए यह आस्था का कार्य है। लेकिन विज्ञान कुछ और कहता है: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने मकर संक्रांति जैसे व्यस्त दिनों में फीकल कॉलिफॉर्म की मात्रा 33,000 यूनिट प्रति 100 मिलीलीटर तक दर्ज की है, जो स्नान के लिए सुरक्षित सीमा 2,500 यूनिट से कहीं अधिक है।
यह सिर्फ कुंभ से जुड़ा एक अस्थायी उछाल नहीं है। CPCB की नियमित निगरानी बताती है कि प्रयागराज में गंगा साल भर प्रदूषण से जूझ रही है—अशुद्ध सीवेज, औद्योगिक अपशिष्ट और अपर्याप्त ढांचे के कारण। सवाल यह है: क्या केवल आस्था उस पानी को शुद्ध कर सकती है जिसे डेटा प्रदूषित बता रहा है?
इनकार बनाम हकीकत: एक खतरनाक दूरी
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में इन निष्कर्षों को "बेबुनियाद" करार दिया, गंगा की कथित आत्म-शुद्धिकरण क्षमता और ऊपरी बांधों से पानी छोड़ने के प्रयासों का हवाला दिया। राज्य सरकार ने एक वैज्ञानिक का उल्लेख किया जिसने दावा किया कि गंगा का pH (8.4–8.6) इसे क्षारीय पानी के समान बनाता है—यानी सुरक्षित। हालांकि गंगा में उच्च घुलित ऑक्सीजन जैसी खासियतें हैं, विशेषज्ञों का कहना है कि यह रोजाना नदी में डाले जा रहे प्रदूषकों की भारी मात्रा को संतुलित करने के लिए काफी नहीं है।
इनकार से भावनाएं शांत हो सकती हैं, लेकिन यह कड़वी सच्चाई को छिपा देता है: कुंभ के दौरान अस्थायी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) और औद्योगिक इकाइयों को बंद करना स्थायी हल नहीं है। नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (NMCG), जिसके लिए ₹20,000 करोड़ का बजट है, नदी की सेहत बहाल करने का लक्ष्य रखता है, लेकिन प्रगति अभी भी अधूरी है। प्रयागराज में ही, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के अनुसार, 128 मिलियन लीटर प्रतिदिन (MLD) अशुद्ध सीवेज गंगा में बह रहा है। इनकार इस अंतर को पाट नहीं सकता—कार्रवाई ही ऐसा कर सकती है।
दीर्घकालिक समाधान ही एकमात्र रास्ता क्यों हैं?
गंगा को साफ करना कोई नया लक्ष्य नहीं है—यह प्रयास 1985 के गंगा एक्शन प्लान से शुरू हुआ था। फिर भी, दशकों और अरबों रुपये बाद भी, यह नदी दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में शुमार है। दीर्घकालिक दृष्टिकोण क्यों जरूरी है, आइए देखें:
- सीवेज प्रबंधन में सुधार: प्रयागराज में रोजाना 468 MLD सीवेज पैदा होता है, लेकिन उपचार क्षमता सिर्फ 340 MLD है। STPs को बढ़ाना और 100% घरों को जोड़ना—न कि सिर्फ अस्थायी डायवर्जन—जरूरी है।
- औद्योगिक नियमन: गंगा किनारे चमड़ा उद्योग, कारखाने और बिजली संयंत्र बिना रोकटोक जहरीला कचरा डालते हैं। अपशिष्ट नियमों का सख्ती से पालन कराना होगा, न कि सिर्फ आयोजन के दौरान बंद करना।
- नदी प्रवाह की बहाली: बांध और सिंचाई परियोजनाएं गंगा के प्राकृतिक प्रवाह को रोकती हैं, जिससे इसकी शुद्धिकरण क्षमता कम होती है। साल भर पर्यावरणीय प्रवाह छोड़ना मदद कर सकता है।
- जन जागरूकता: कचरे के निपटान और जल गुणवत्ता के बारे में लोगों को शिक्षित करना—वास्तविक समय डेटा के साथ—स्रोत पर प्रदूषण को कम कर सकता है।
कुंभ की सुर्खियां इस जरूरत को और उजागर करती हैं। लाखों लोग दूषित पानी में डुबकी लगा रहे हैं, जिससे त्वचा रोग, टाइफाइड और हेपेटाइटिस जैसे स्वास्थ्य जोखिम बढ़ रहे हैं। 45 दिनों के अस्थायी उपाय समस्या को छिपा सकते हैं, लेकिन गंगा को स्थायी इलाज चाहिए।
आपकी राय क्या है?
क्या आपको लगता है कि गंगा प्रदूषण से निपटने के लिए भारत के पास सही रणनीति है? या क्या और कदम उठाने की जरूरत है? नीचे कमेंट करें और अपने विचार साझा करें!