उड़ीसा हाई कोर्ट: महिला की कमाई की क्षमता देख भरण-पोषण 8,000 से घटकर 5,000 रुपये
प्रकाशित: 23 फरवरी, 2025

उड़ीसा हाई कोर्ट ने हाल ही में एक तलाक मामले में अहम फैसला सुनाया, जिसमें एक शिक्षित और काम करने में सक्षम महिला का भरण-पोषण (एलिमनी) 8,000 रुपये से घटाकर 5,000 रुपये प्रति माह कर दिया गया। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई पत्नी अपनी योग्यता और अनुभव से खुद को आर्थिक रूप से सहारा दे सकती है, तो उसे केवल पति पर निर्भर रहने का हक नहीं। यह फैसला भरण-पोषण के कानूनी ढांचे और लैंगिक समानता की बहस को नई दिशा देता है। आइए इस मामले को विस्तार से समझें।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 2013 से शुरू होता है, जब एक महिला ने 9 सितंबर को शादी की, लेकिन उसी साल 9 दिसंबर से पति से अलग रहने लगी। 2014 में, उसने राउरकेला फैमिली कोर्ट में तलाक और भरण-पोषण की मांग की। फैमिली कोर्ट ने पति को 8,000 रुपये मासिक भरण-पोषण देने का आदेश दिया, यह नोट करते हुए कि महिला साइंस ग्रेजुएट है और पत्रकारिता व जनसंचार में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा धारक है। हालांकि, वह वर्तमान में बेरोजगार थी। पति ने इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की, जिसके बाद यह नया निर्णय आया।
हाई कोर्ट का तर्क
जस्टिस गौरीशंकर सतपति ने कहा, "कानून उन पत्नियों की सराहना नहीं करता जो उच्च योग्यता होने के बावजूद काम नहीं करतीं और केवल पति पर भरण-पोषण का बोझ डालती हैं।" कोर्ट ने CrPC की धारा 125 का हवाला दिया, जिसका मकसद उन पत्नियों को सहारा देना है जो खुद का खर्च नहीं उठा सकतीं। हाई कोर्ट ने पति की आय, उसकी बुजुर्ग मां की जिम्मेदारी और महिला की कमाई की संभावना को देखते हुए भरण-पोषण राशि में 3,000 रुपये की कटौती की।
जस्टिस सतपति ने जोर दिया कि न्याय के हित में यह संतुलन जरूरी है। महिला की उम्र (लगभग 34 साल) और उसकी शिक्षा को देखते हुए, कोर्ट ने माना कि वह नौकरी कर अपनी आजीविका कमा सकती है।
कानूनी और सामाजिक निहितार्थ
यह फैसला हाल के सुप्रीम कोर्ट दिशानिर्देशों (दिसंबर 2024) से मेल खाता है, जहां तलाक मामलों में भरण-पोषण तय करने के लिए 8 कारक गिनाए गए थे—जैसे दोनों की आर्थिक स्थिति, शिक्षा, और स्वतंत्र आय। यह बेंगलुरु टेकी आतुल सुभाष की आत्महत्या के बाद उठी बहस को भी प्रतिबिंबित करता है, जहां वैवाहिक विवादों में संतुलन की जरूरत पर जोर दिया गया। विशेषज्ञों का कहना है कि यह निर्णय महिलाओं को आत्मनिर्भरता की ओर प्रेरित करेगा, लेकिन साथ ही उन पर आर्थिक दबाव भी डाल सकता है।
आपकी राय क्या है?
क्या भरण-पोषण का अधिकार केवल जरूरत पर आधारित होना चाहिए, या इसमें लैंगिक समानता को भी देखा जाना चाहिए? इस फैसले से समाज और कानून में क्या बदलाव आएंगे? नीचे कमेंट करें और अपने विचार साझा करें!
लेबल: उड़ीसा हाई कोर्ट, भरण-पोषण राशि, तलाक मामला, महिला कमाई, कानूनी फैसला, आत्मनिर्भरता