सम्राट अशोक: जन्म से मृत्यु तक का पूर्ण विवरण

सम्राट अशोक: जन्म से मृत्यु तक का पूर्ण विवरण

सम्राट अशोक (268-232 ईसा पूर्व) मौर्य साम्राज्य के सबसे महान शासकों में से एक थे, जिन्हें उनकी सैन्य विजयों और बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए जाना जाता है। उनके जीवन का परिवर्तन एक क्रूर योद्धा से धर्म और अहिंसा के प्रचारक तक अद्भुत है। यह पोस्ट अशोक के जन्म से मृत्यु तक हर पहलू को विस्तार से प्रस्तुत करती है।

1. जन्म और प्रारंभिक जीवन

अशोक का जन्म 304 ईसा पूर्व (लगभग) पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना, बिहार) में हुआ था। वे मौर्य सम्राट बिंदुसार और रानी सुभद्रांगी (या धर्मा) के पुत्र थे।

विशेषता विवरण
जन्म लगभग 304 ईसा पूर्व, पाटलिपुत्र
पिता बिंदुसार, मौर्य सम्राट
माता सुभद्रांगी (या धर्मा)
भाई-बहन सुसीम (बड़ा भाई), अन्य सौतेले भाई-बहन

बचपन और शिक्षा

अशोक को राजकुमार के रूप में उच्च शिक्षा दी गई, जिसमें युद्ध कला, प्रशासन, और शास्त्र शामिल थे। वे कुशल योद्धा और रणनीतिकार थे। उनकी शिक्षा में तक्षशिला का प्रभाव संभवतः रहा, जो उस समय का प्रमुख शिक्षा केंद्र था।

प्रमुख कौशल:
1. युद्ध कला: तलवारबाजी, धनुर्विद्या, और घुड़सवारी।
2. प्रशासन: कौटिल्य के अर्थशास्त्र के सिद्धांत।
3. दर्शन: वैदिक और बौद्ध विचारों का अध्ययन।
        

2. युवावस्था और प्रारंभिक करियर

प्रांतीय शासक

अशोक को बिंदुसार ने प्रांतों के शासन के लिए नियुक्त किया। वे उज्जयिनी और तक्षशिला के गवर्नर रहे।

  • तक्षशिला विद्रोह: अशोक ने तक्षशिला में विद्रोह को कुशलतापूर्वक दबाया, जिससे उनकी सैन्य क्षमता सिद्ध हुई।
  • उज्जयिनी: मालवा क्षेत्र में प्रशासनिक अनुभव प्राप्त किया।

प्रेम और विवाह

अशोक का विवाह कई रानियों से हुआ, जिनमें प्रमुख थीं:

रानी विवरण
देवी (वेदिसा-महादेवी) बौद्ध व्यापारी की बेटी, संभवतः अशोक की प्रथम पत्नी, पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा की माता।
असंधिमित्रा प्रमुख रानी, पुत्र कुणाल की माता।
पद्मावती पुत्र कुणाल की माता (कुछ स्रोतों में)।
तिष्यरक्षिता बाद की पत्नी, अशोक के अंतिम वर्षों में प्रभावशाली।

अशोक का देवी से प्रेम प्रसिद्ध है, जो उज्जयिनी में हुआ।

3. सिंहासन प्राप्ति

बिंदुसार की मृत्यु (273 ईसा पूर्व) के बाद सिंहासन के लिए संघर्ष हुआ। अशोक ने अपने बड़े भाई सुसीम और अन्य भाइयों को पराजित कर 268 ईसा पूर्व में मौर्य सिंहासन प्राप्त किया।

  • सिंहासन के लिए युद्ध: कुछ स्रोत (जैसे दिव्यावदान) कहते हैं कि अशोक ने अपने 99 भाइयों को मारा, लेकिन यह अतिशयोक्ति हो सकती है।
  • कठोर छवि: प्रारंभ में अशोक को चंडाशोक (क्रूर अशोक) कहा गया।

4. प्रारंभिक शासन और कलिंग युद्ध

शासन की शुरुआत

अशोक ने मौर्य साम्राज्य को सुदृढ़ किया। उनका साम्राज्य अफगानिस्तान से बंगाल और दक्षिण में कर्नाटक तक फैला था।

कलिंग युद्ध (261 ईसा पूर्व)

अशोक का सबसे महत्वपूर्ण युद्ध कलिंग (आधुनिक ओडिशा) के खिलाफ था।

कलिंग युद्ध के परिणाम:
1. विजय: अशोक ने कलिंग को जीता।
2. विनाश: लाखों लोग मारे गए, घायल हुए, या विस्थापित।
3. मन परिवर्तन: युद्ध की भयावहता ने अशोक को गहराई से प्रभावित किया।
        

कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने युद्ध त्याग दिया और बौद्ध धर्म की ओर झुकाव दिखाया।

5. बौद्ध धर्म और धम्म

बौद्ध धर्म की स्वीकृति

कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने बौद्ध भिक्षु उपगुप्त के मार्गदर्शन में बौद्ध धर्म अपनाया। उन्होंने इसे राजकीय धर्म नहीं बनाया, बल्कि धम्म (नैतिक नीति) का प्रचार किया।

धम्म की विशेषताएँ

सिद्धांत विवरण
अहिंसा सभी प्राणियों के प्रति करुणा
सत्य सत्यनिष्ठा और नैतिकता
सहिष्णुता सभी धर्मों का सम्मान
कल्याण प्रजा के लिए अस्पताल, सड़कें, वृक्षारोपण

धम्म का प्रचार

  • शिलालेख: अशोक ने ब्राह्मी लिपि में 33 प्रमुख और लघु शिलालेख बनवाए, जैसे दिल्ली-टोपरा, कालसी, और सारनाथ।
  • धर्ममहामात्र: धम्म प्रचार के लिए विशेष अधिकारी नियुक्त।
  • बौद्ध संगीति: तीसरी बौद्ध संगीति (पाटलिपुत्र) का आयोजन।
  • विदेशों में प्रचार: श्रीलंका, मध्य एशिया, और दक्षिण-पूर्व एशिया में बौद्ध दूत भेजे।

6. प्रशासनिक योगदान

अशोक का प्रशासन केंद्रीकृत और कल्याणकारी था।

प्रमुख प्रशासनिक विशेषताएँ:
1. प्रांत: चार प्रमुख प्रांत (उज्जयिनी, तक्षशिला, सुवर्णगिरी, तोसाली)।
2. गुप्तचर: साम्राज्य की सुरक्षा और सूचना।
3. कर: भूमि और व्यापार कर, लेकिन प्रजा पर कम बोझ।
4. कल्याण: पशु चिकित्सालय, स्कूल, और जल प्रबंधन।
        
पद कार्य
धर्ममहामात्र धम्म का प्रचार और प्रजा कल्याण
स्थानिक जिला प्रशासक
युक्त राजस्व और लेखा अधिकारी

7. कला और स्थापत्य

अशोक के शासनकाल में कला और स्थापत्य का विकास हुआ।

  • अशोक स्तंभ: सारनाथ (सिंह चिह्न), लौरिया नंदनगढ़।
  • स्तूप: सांची, बोधगया, और अमरावती।
  • गुफाएँ: बराबर और नगरजुनी (आजीवक समर्थन)।

मौर्य कला में पॉलिश तकनीक और यथार्थवादी मूर्तियाँ (जैसे दीदारगंज यक्षिणी) प्रमुख थीं।

8. व्यक्तिगत जीवन

परिवार

अशोक के कई पुत्र और पुत्रियाँ थीं।

संतान विवरण
महेंद्र पुत्र, श्रीलंका में बौद्ध धर्म प्रचारक
संघमित्रा पुत्री, श्रीलंका में बौद्ध भिक्षुणी
कुणाल पुत्र, तक्षशिला का गवर्नर
तीवल पुत्र, कुछ स्रोतों में उल्लेख

जीवन शैली

बौद्ध धर्म अपनाने के बाद अशोक का जीवन सादगीपूर्ण और धर्मपरायण हो गया। उन्होंने मांसाहार और शिकार छोड़ दिया।

9. अंतिम वर्ष और मृत्यु

अशोक की मृत्यु 232 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र में हुई। उनके अंतिम वर्षों में साम्राज्य कमजोर होने लगा।

  • स्वास्थ्य: बौद्ध ग्रंथों के अनुसार, अशोक अंतिम वर्षों में अस्वस्थ थे।
  • तिष्यरक्षिता की भूमिका: कुछ स्रोत कहते हैं कि उनकी पत्नी तिष्यरक्षिता ने बौद्ध धर्म के प्रति अशोक का झुकाव कम करने की कोशिश की।
  • उत्तराधिकार: अशोक के बाद उनका पोता दशरथ और अन्य शासकों ने शासन किया, लेकिन साम्राज्य विघटित हो गया।

10. साहित्य और स्रोत

अशोक के जीवन का विवरण कई स्रोतों से मिलता है।

स्रोत विवरण
अशोकावदान बौद्ध ग्रंथ, अशोक की जीवनी
दिव्यावदान अशोक और बौद्ध धर्म की कहानियाँ
महावंश श्रीलंकाई ग्रंथ, अशोक और बौद्ध प्रचार
शिलालेख अशोक के स्वयं के लेख, जैसे प्रमुख और लघु शिलालेख

11. अशोक की विरासत

अशोक की विरासत भारतीय और विश्व इतिहास में अद्वितीय है।

  • बौद्ध धर्म: अशोक ने बौद्ध धर्म को विश्व धर्म बनाया।
  • कला: अशोक स्तंभ और स्तूप भारतीय कला के प्रतीक हैं।
  • प्रतीक: सारनाथ का सिंह चिह्न भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है।
  • नैतिक शासन: धम्म की नीति ने बाद के शासकों को प्रेरित किया।

12. प्रमुख प्रतीक और शब्द

प्रतीक

- अशोक स्तंभ: धर्म और शक्ति का प्रतीक।
- धर्म चक्र: बौद्ध धर्म और धम्म।
- सिंह चिह्न: मौर्य साम्राज्य की शक्ति।
- बोधि वृक्ष: बौद्ध धर्म का प्रतीक।

शब्द

  • धम्म: अशोक की नैतिक नीति।
  • चंडाशोक: प्रारंभिक क्रूर अशोक।
  • धम्माशोक: धर्मपरायण अशोक।
  • धर्मलिपि: अशोक के शिलालेख।

निष्कर्ष

सम्राट अशोक का जीवन एक योद्धा से धर्म प्रचारक तक की प्रेरणादायक यात्रा है। उनकी सैन्य विजयों, धम्म नीति, और बौद्ध धर्म के प्रचार ने विश्व इतिहास को प्रभावित किया। अशोक की विरासत आज भी कला, संस्कृति, और नैतिकता के रूप में जीवंत है।

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